प्रतीकात्मक तस्वीर
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उत्तर प्रदेश में नई फार्मास्युटिकल एवं चिकित्सा उपकरण उद्योग नीति-2023 लागू कर दी गई है, लेकिन प्रदेश की लघु एवं मध्यम दवा इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए अभी तक कोई इंतजाम नहीं किया गया है। सरकारी खरीद में 20 करोड़ के सालाना टर्न ओवर की बाध्यता से यहां के निर्माता अपनी दवाएं दूसरे राज्य में बेचने के लिए विवश हैं। प्रदेश में तैयार होने वाली दवाएं यहां के मरीजों को नहीं मिल पा रही है। दवा उत्पादकों की मांग है कि टर्न ओवर की बाध्यता खत्म कर गुणवत्ता पर जोर दिया जाए। सरकारी खरीद में प्रदेश की दवा कंपनियों से ही 60 फीसदी दवाएं खरीदी जाएं।
सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य होने की वजह से यूपी में दवा की खपत अन्य राज्यों से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में चल रही दवा कंपनियां करीब 60 फीसदी से ज्यादा उत्पादन यहीं खपाती है। प्रदेश में करीब 200 से ज्यादा लघु एवं मध्यम दवा कंपनियां हैं। दवा कारोबारियों का कहना है कि प्रदेश में दवा कारोबार को बढ़ावा देने के लिए यहां चल रही कंपनियों को संवारना जरूरी है। दवा कारोबारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाई कॉरपोरेशन में उन्हीं कंपनियों को दवा आपूर्ति की इजाजत हैं, जिनका सालाना टर्न ओवर 20 करोड़ से अधिक है। ऐसे में छोटी कंपनियों में तैयार होने वाली दवाएं मजबूरी में दूसरे राज्य में बिकती है।
तीन साल की बाध्यता भी बनी मुसीबत
ड्रग एक्ट के नियमों के तहत छह माह में तीन बैच की जांच कराकर ही संबंधित उत्पाद को जारी किया जा सकता है। यानी प्रदेश में स्थापित होने वाली कंपनी तीन साल तक दवा को बाजार में नहीं उतार सकती है, जबकि दूसरे राज्यों में यह व्यवस्था नहीं है। वे दवा की गुणवत्ता सही पाए जाने पर उसे सरकारी खरीद में शामिल कर लेते हैं। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग भी चाहता है कि प्रदेश में स्थित सूक्ष्य, लघु एवं मध्यम वर्ग की दवा कंपनियों को बढ़ावा मिले। इसके लिए एफएसडीए के अफसरों, फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के बीच कई बार बैठक हो चुकी है। दवा निर्माताओं का कहना है कि विभिन्न राज्य सरकारी खरीद में 60 फीसदी अपने प्रदेश की कंपनियों को शामिल करते हैं, जबकि 40 फीसदी दूसरे प्रदेश से लेते हैं, लेकिन यूपी में यह व्यवस्था लागू नहीं है।
गुणवत्ता जांचें, टर्न ओवर छोड़ें
महामंत्री फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन अतुल सेठ का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में दवा कारोबार को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अफसरों ने चालाकी से नई नीति में पहले से चल रही कंपनियों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं किया है। 20 करोड़ सालाना टर्न ओवर की बाध्यता खत्म कर मेडिकल सप्लाई कॉरपोरेशन की खरीद में प्रदेश की कंपनियों की भागीदारी बढ़ाई जाए। खरीद के नियमों में ढील देते हुए प्रदेश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता जांचने के नियम कड़े बनाए जाने चाहिए।