कल्याण सिंह
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राममंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे और दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे रामभक्त स्व. कल्याण सिंह का सारा जीवन संघर्षों भरा रहा है। उनकी 92वीं जयंती 5 जनवरी को है। वे बेशक दो बार सूबे के मुख्यमंत्री बने। मगर देश की राजनीति में हिंदुत्व के नायक का खिताब उन्होंने यूं ही नहीं पाया। न कभी पद पर बने रहने के लिए उसूलों से समझौता किया और न राजनीति में सौदा किया। एक इंटर कॉलेज के शिक्षक से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक के संघर्षों भरे सफर की डगर बेहद कांटों भरी रही। जिसके दम पर वे हिंदू हृदय सम्राट तक कहलाए गए। पेश है, उनकी जयंती पर कुछ विशेष….
मूल रूप से जिले की अतरौली तहसील के गांव मढ़ौली गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह प्रदेश की राजनीति के शिखर पर पहुंचे। बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते थे। उच्च शिक्षा हासिल कर अतरौली के एक इंटर कॉलेज में अध्यापक बने। 1967 में पहली बार अतरौली से विधायक बने और 1980 तक लगातार जीते। आपातकाल में 21 महीने तक अलीगढ़ व बनारस की जेल में रहे। जनसंघ से भाजपा के गठन के बाद प्रदेश संगठन महामंत्री व प्रदेशाध्यक्ष तक बनाए गए। इस दौरान गांव-गांव घूमकर भाजपा की जड़ें मजबूत कीं। अब विशाल वट वृक्ष बन चुकी इस पार्टी को कल्याण सिंह व उनके सहयोगियों ने ही शुरुआती दिनों में सींचा था, जब देश में भाजपा का उभार हुआ तो 1991 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वे मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के साथ काम कर चुके लोग बताते हैं कि उन्होंने भाजपा को खड़ा करने में दिन रात एक किया। आज उसी मेहनत का परिणाम है कि भाजपा यहां खड़ी है।
अधूरी रह गई रामलला के दर्शन की अंतिम इच्छा
ये सभी जानते और कहते हैं कि उन्होंने पद पर बने रहने के लिए कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इसी का परिणाम रहा कि अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने से इंकार कर दिया। विवादित ढांचे के विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद को ठोकर मार दी और कहा कि राम मंदिर के लिए एक नहीं सैकड़ों सत्ता कुर्बान हैं। हालांकि, अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में विराजमान रामलला के दर्शन करने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई। 89 वर्ष की उम्र में 21 अगस्त 2021 की देर शाम बीमारी के चलते उनका लखनऊ में देहांत हो गया।