गोविंद नगर बाजार अतिक्रमण और जाम से बेहाल, व्यापारियों ने गिनाईं प्रमुख समस्याएं
कानपुर के साउथ जोन का प्रमुख व्यापारिक केंद्र गोविंद नगर बाजार इन दिनों अतिक्रमण और अव्यवस्था के कारण बदहाल स्थिति में है। चावला मार्केट से दुर्गा मंदिर तक की सड़क पर फुटपाथ तक 500 से 1000 रुपए में ‘बेचे’ जा रहे हैं। लगभग एक किलोमीटर लंबे इस व्यस्त बाजार क्षेत्र में आधे से ज्यादा फुटपाथ दुकानदारों के कब्जे में हैं।
हर पल लगता है जाम
हरी शंकर विद्यार्थी मार्केट के संरक्षक सुनील नारंग बताते हैं कि बाटा चौराहा से लेकर नटराज तक कपड़ों की डमी और सामान सड़कों पर रखा होता है, जिससे ट्रैफिक जाम आम समस्या बन गया है। नगर निगम समय-समय पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाता है, लेकिन कुछ ही घंटों बाद हालात फिर वही हो जाते हैं।
ऐतिहासिक बाजार आज अतिक्रमण की चपेट में
1948 में स्थापित गोविंद नगर बाजार में आज करीब 5000 दुकानों में रेडीमेड गारमेंट्स, ज्वैलरी, हार्डवेयर, क्रॉकरी और फुटवियर की बिक्री होती है। रोजाना करीब 20,000 से 25,000 ग्राहक यहां पहुंचते हैं, लेकिन अतिक्रमण और जाम के कारण ग्राहक भी परेशान हैं और व्यापारी भी।
सड़कें हुईं संकरी, फुटपाथ पर कब्जा
विद्यार्थी मार्केट के बाहर मिट्टी के बर्तनों का अनधिकृत बाजार लग जाता है। दुकानदारों ने फुटपाथों को ऊंचा करके पक्की संरचना बना ली है। बाटा चौराहे से लेकर आदर्श बेकरी तक का फुटपाथ पूरी तरह अतिक्रमण की चपेट में है।
पार्किंग और जल निकासी बनीं बड़ी समस्याएं
शम्मी भल्ला, उप प्रधान, बताते हैं कि 40 फीट चौड़ी सड़क अब अतिक्रमण के चलते महज़ 20 फीट रह गई है। साप्ताहिक मंगल बाजार में बाहर से आए व्यापारी फुटपाथ को किराए पर लेकर दुकानें लगाते हैं। जल निकासी भी एक बड़ी समस्या है। नाले की ऊंचाई सड़क से अधिक होने के कारण पानी भर जाता है।
सुरक्षा के लिए पिकेट और लाइसेंस की मांग
कोषाध्यक्ष अमित बाजपेई का कहना है कि सराफा व्यापारियों की सुरक्षा के लिए बाजार में पुलिस पिकेट की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें शस्त्र लाइसेंस की सुविधा मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नालों पर से कब्जा हटाकर सड़क की चौड़ाई बढ़ाई जा सकती है।
गलियों तक फैला अतिक्रमण
बाजार से जुड़ी लिंक रोड पर ग्राहकों के वाहन खड़े होने से गलियों में रहने वाले लोग भी जाम और अव्यवस्था से जूझ रहे हैं। कई दुकानदारों ने अपने साइनेज सड़क तक फैला रखे हैं। नगर निगम और पुलिस के अभियान अक्सर असफल साबित होते हैं, क्योंकि कुछ समय बाद स्थिति फिर वैसी ही हो जाती है।