अमेरिका के अलबामा में आयोजित वर्ल्ड पुलिस एंड फायर गेम्स 2025 में भारत को बड़ी सफलता मिली है। भदोही के इरफान पठान और प्रयागराज के शिवांग मिश्रा ने देश के लिए पदक जीतकर इतिहास रच दिया है।
इन दोनों खिलाड़ियों का स्वागत प्रयागराज के मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में किया गया। यह वही स्टेडियम है, जहां दोनों ने अपने करियर की शुरुआत की थी। स्टेडियम में ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ जोरदार स्वागत हुआ।
इरफान और शिवांग की कहानी प्रेरणादायक है। इसी स्टेडियम की मिट्टी में उन्होंने कुश्ती के दांव-पेंच सीखे। कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता से दोनों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल की। उनकी इस उपलब्धि ने साबित किया है कि प्रतिभा को बस सही दिशा और अवसर की जरूरत होती है।
भदोही से अमेरिका तक—इरफान का सफर
इरफान पठान का घर भदोही में है वहीं, गली के नुक्कड़ पर अब भी उनके पिता सब्जी का ठेला लगाते हैं। वही पुरानी झोपड़ी, वही संघर्ष। तीन भाइयों में सबसे छोटा इरफान जब खेल के मैदान में उतरा, तो न जूते थे न ग्लव्स। बस सपना था—एक दिन तिरंगा ऊंचा होगा, और उसे ऊंचा करने वाली उनकी मेहनत होगी।
कभी-कभी पेट की भूख और जेब की खाली पोटली ने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर इरफान झुके नहीं। प्रयागराज के मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में रोज़ घंटों प्रैक्टिस, फिर रात को किसी पेड़ के नीचे बैठकर अगले दिन की योजना—यही दिनचर्या थी। जब यूपी पुलिस में भर्ती हुए तो एक उम्मीद मिली कि अब परिवार का पेट भी भर पाएगा और खेल भी जारी रहेगा। उसी उम्मीद ने आज उन्हें अमेरिका तक पहुंचाया, जहां इरफान ने अपने देश के लिए मेडल जीतकर गरीबी की उस लकीर को मिटा दिया, जिसे कभी उनके गांव में किस्मत कहा जाता था।
डाभी गांव का लाल—शिवांग मिश्रा
प्रयागराज के करछना तहसील के डाभी गांव से निकला यह नाम कोई अचानक पैदा नहीं हुआ। पिता सीआईएसएफ में रहे और भाई अमित मिश्रा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी। घर में अनुशासन के साए में पला शिवांग बचपन में स्कूल से आते तो किताबों के बोझ से नहीं, प्रैक्टिस के जुनून से थकते थे।
गांव की गलियों से स्टेडियम तक का रास्ता आसान नहीं था। गांव के दोस्त खेल छोड़ते गए, लेकिन शिवांग हर हार को सीढ़ी बनाते गए। स्टेडियम में पहली बार इरफान से मिले तो जैसे दोनों की कहानियां आपस में मिल गईं। एक गरीब बस्तियों का लाल, दूसरा अनुशासन और समर्पण का प्रतीक दोनों की दोस्ती मजबूत होती गई।
दोस्ती, मेहनत और सपना—एक ही उड़ान
स्टेडियम में साथ पसीना बहाते-बहाते यह जोड़ी यूपी पुलिस में भी साथ भर्ती हुई। फिर एक ही दिन अमेरिका जाने की फ्लाइट में चढ़े। अमेरिका की धरती पर भारतीय झंडे के लिए पसीना बहाया और मेडल लेकर लौटे तो न सिर्फ अपने परिवारों के लिए बल्कि पूरे प्रदेश के लिए मिसाल बन गए।
स्टेडियम में ऐतिहासिक स्वागत
जब दोनों प्रयागराज लौटे तो मदन मोहन मालवीय स्टेडियम फिर से गवाह बना। इस बार इरफान और शिवांग के संघर्ष की जीत का। बच्चों ने नाच-गाकर, लोगों ने जयकारे लगाकर स्वागत किया। फूल मालाओं से लदे दोनों खिलाड़ियों ने मंच पर खड़े होकर बीते दिनों को याद किया।
इरफान ने कहा, “अगर शिवांग भाई साथ न होते तो मैं शायद हिम्मत हार जाता।” वही शिवांग बोले, “इरफान सिर्फ दोस्त नहीं, मेरे लिए वो सपना हैं, जो बताते हैं कि गरीबी से बड़ा कोई डर नहीं।”
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आज यह जोड़ी केवल पदक जीतकर नहीं लौटी, बल्कि एक ऐसा रास्ता दिखाकर लौटी है, जो बताता है कि गांव की मिट्टी, टूटी चप्पल और खाली जेब भी किसी सपने को बड़ा होने से रोक नहीं सकती। मदन मोहन मालवीय स्टेडियम की यह मिट्टी आज फिर कह रही है कि सपने वहीं उगते हैं जहां पसीना गिरता है।
प्रयागराज को इरफान और शिवांग पर गर्व है, और अब पूरे प्रदेश को भी। ये दो नाम अब हजारों गांवों में, गलियों में, खेल मैदानों में पसीना बहा रहे बच्चों के लिए उम्मीद बन गए हैं।