अयोध्या के रायगंज स्थित जैन मंदिर में पंच कल्यायणक महोत्सव की धूम है।
अयोध्या के रायगंज स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे पंच कल्याणक महोत्सव में भगवान ऋषभदेव का दीक्षा कल्याणक हुआ।अगले चरण में गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता, आचार्य भद्र बाहु, पीठाधीश रवींद्रकीर्ति स्वामी एवं माता चंदनामती माता के प्रवचन से हुआ। इस अवसर पर
.
उन्होंने कहा कि बड़ा बनने अथवा भगवान बनने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है। मानवता के सर्वोच्च शिखर सिद्ध होने वाले प्रथम तीर्थंकरों के भी जीवन से यह तथ्य प्रतिष्ठित है। उन्होंने ऐसे ही नहीं परमपद प्राप्त किए, बल्कि इसके पीछे उनकी कठोर साधना थी।
जीवन को उसके वास्तविक अर्थों में पाना है, तो भगवंतों का अनुसरण-स्वामी रवींद्र कीर्ति
उन्होंने कहा कि हम यह न समझें कि जीवन मात्र भोग-विलास के लिए है। भोग-विलास तो जीवन को खो देने जैसा है, जीवन को उसके वास्तविक अर्थों में पाना है, तो भगवंतों का अनुसरण करना होगा। उनका यह आह्वान अगले चरण में भगवान की आहारचर्या की प्रस्तुति से हुआ। आहार में भगवान को परंपरानुरूप प्रतीकात्मक भोग ही प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का समापन इंद्र-इंद्राणी की भूमिका का निर्वहन करने वाले श्रद्धालुओं को सम्मानित किए जाने से हुआ।
प्रथम तीर्थंकर की पूर्व प्रतिष्ठित मूर्ति का पंचामृत अभिषेक किया गया
बताते चले कि जन्म कल्याणक के बाद न केवल प्रथम तीर्थंकर की प्रतिमा को, बल्कि प्रतिष्ठा के लिए तैयार अन्य तीर्थंकरों तथा जैन धर्म के और प्रेरक-प्रतीकों की 1800 प्रतिमाओं को नई पोशाक धारण कराई गई, उत्सव मनाया गया। दीक्षा कल्याणक की बारी आने के साथ उन्हें निर्वस्त्र कर कठोर तपस्या के लिए तैयार किया गया, ताकि वह मानतवा का श्रेष्ठ तम ज्ञान प्राप्त कर सकें। इससे पूर्व भोर में ही प्रतिष्ठा महोत्सव का आरंभ प्रथम तीर्थंकर की पूर्व प्रतिष्ठित मूर्ति का पंचामृत अभिषेक किए जाने से हुआ।
भगवान को जीवन की कठोरताओं का सामना करते देखना उन्हें भावुक करने वाला
इससे गत दो दिनों के दौरान श्रद्धालु गर्भ और जन्मकल्याणक की खुशियों को अपनी झोली में ठीक से समेट नहीं सके थे और आज दीक्षा कल्याणक के साथ भगवान को जीवन की कठोरताओं का सामना करते देखना उन्हें भावुक करने वाला रहा।