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Indo-Pak युद्ध 1971: उस समय मुझे बहुत सम्मान मिला..। अब भी दर्द है

 

शहीद श्याम सिंह के परिवार के लोग
– फोटो : संवाद

भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध  में भारतीय सेना की शौर्यगाथा आज भी सुनने वालों को रोमांचित कर देती है। इसमें बड़ी संख्या में अलीगढ़ के सैनिकों ने हिस्सेदारी की थी। उस वक्त हाथरस का जिले के तौर पर गठन नहीं हुआ था। यह अलीगढ़ की ही तहसील थी। अलीगढ़ और हाथरस को मिलाकर कुल 21 फौजियों ने इस जंग में अपनी जान कुर्बान कर दी थी। जीवित सैनिकों के मन में इस बात का संतोष था कि पाकिस्तानी सेना को उन्होंने हर मोर्चे पर धूल चटा दी थी। उन्होंने इतिहास के साथ ही भूगोल बदलकर रख दिया था। पूर्वी पाकिस्तान में तो भारतीय सैनिक बंगालियों की तरह लुंगी पहनकर घुसे थे। जब फौजी वर्दी पहनी तो पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र वजूद में आ गया था। आइए सुनते हैं कुछ ऐसे ही जांबाजों की कहानी उन्हीं की जुबानी-

शहीद पति के नाम बने गांव के बाहर गेट

 

मुरसान भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में जीवन का सर्वोच्च बलिदान देने वाले सूरमाओं के परिवार को तो तत्कालीन सरकार, शासन और समाज से सम्मान तो भरपूर मिला लेकिन दर्द आजतक मिल रहा है। कई लोगों ने कारगिल की लड़ाई में शहीद होने वाले सैनिक परिवारों को तमाम सहूलियतों से नवाजने की घटना भी देखी है। उन्हें मलाल इस बात का है कि उनके परिवार के भी शहीद को काश वही सहूलियतें मिलतीं और उनकी स्मृति को अमर करने के लिए कुछ काम किए जाते।

शहीद श्याम सिंह

पति की पेंशन के अलावा और कोई सुविधा नहीं मिली शहीद श्याम सिंह की पत्नी को

 

क्षेत्र के गांव कंचना निवासी श्याम सिंह 20 वर्ष की आयु में देश के लिए लड़ते हुए बांग्लादेश के ढाका में शहीद हो गए थे। शहीद श्याम सिंह की पत्नी सुशीला देवी को पेंशन से अलग कोई भी सुविधा नहीं दी गई है। सुशीला देवी ने मांग की है कि उनके पति शहीद श्याम सिंह के नाम से गांव के बाहर एक गेट प्रशासन को बनाना चाहिए। फिलहाल में गांव के निकट पोखर पर अमृत सरोवर का कार्य शहीद श्याम सिंह के नाम से कराया जा रहा है। सुशीला देवी का कहना है कि अमृत सरोवर की जगह पर उनके पति की एक प्रतिमा लगाई जाए और उनका समाधि स्थल भी बनाया जाए। सुशीला देवी ने बताया कि उनके पति श्याम सिंह 18 वर्ष की उम्र पार करते ही सेना में भर्ती हो गए थे। वह सेना में 1 साल 11 महीने पर 9 दिन रहे। इसके बाद 16 दिसंबर को वह पाकिस्तान से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। कंचना के रहने वाले शहीद श्याम सिंह सहित सात भाई थे। इनमें बड़े भाई महीपाल सिंह प्रधान, बृजपाल सिंह, सूरजपाल सिंह, शहीद श्याम सिंह, निरंजन सिंह, विजेंद्र सिंह, रामवीर सिंह है। श्याम सिंह के भाइयों में सूरजपाल सिंह व रामवीर सिंह मौजूद हैं। बाकी सभी का निधन हो चुका है।

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