लखीमपुर खीरी जिले के नेपाल सीमा से सटे थारू बहुल गांवों में सैकड़ों आदिवासी परिवार वन विभाग के पुराने और कथित रूप से फर्जी मुकदमों की वजह से दहशत और असमंजस में जीवन बिता रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों पहले विभाग ने हजारों थारू आदिवासियों पर झूठे आरोप लगाकर मामले दर्ज किए थे, जिनमें कई मृत, वृद्ध, जन्मांध और मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति भी ‘वांछित अभियुक्त’ बताए गए हैं।
इन मुकदमों के चलते अदालतों से लगातार सम्मन और गिरफ्तारी वारंट जारी हो रहे हैं। भय का आलम यह है कि कई निर्दोष आदिवासी भारत-नेपाल सीमा के इलाकों में छिपकर रहने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों के समय वन विभाग ने सरियापारा, भूड़ा, बिरिया, ढकिया, सुंडा, पिपरौला, बजाही, बनकटी और कजरिया सहित लगभग दर्जनभर गांवों के हजारों निवासियों पर विभिन्न धाराओं में मामले दर्ज किए थे। कई ग्रामीणों को यह तक नहीं पता कि उनके खिलाफ कब और क्यों केस दर्ज हुआ।
ग्राम सरियापारा के रामभजन जन्म से नेत्रहीन हैं, जबकि रज्जन मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। परिजनों ने बताया कि दोनों ही व्यक्ति स्वयं कुछ नहीं कर सकते, फिर भी उनके नाम पर कई मुकदमे दर्ज हैं।
इस मुद्दे को लेकर क्षेत्रीय विधायक रोमी साहनी ने पीड़ितों के प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी और उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी। मुख्यमंत्री ने कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
वर्तमान में थारू समाज के ये निर्दोष परिवार वारंट और सम्मनों के भय में जी रहे हैं। लोगों का सवाल है कि कब तक वे इस झूठे मुकदमों की तलवार के साये में रहेंगे और सरकार कब उन्हें न्याय दिलाएगी।
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