आल्वार् को श्री प्रभु की परिक्रमा करवाकर उनके श्री चरणों में अर्पण कर दिया और तुलसी पत्रों से धक दिया, जो उनके मोक्ष पाने का सूचक है
दक्षिण भारतीय शैली के वृंदावन में स्थित विशालतम रंगनाथ मंदिर में दस दिवसीय बैकुंठ उत्सव का समापन रविवार देर रात हो गया। दस दिन तक भगवान रंगनाथ ने उत्सव के दौरान अलग अलग स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए। बैकुंठ उत्सव में वर्ष एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में औ
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बैकुंठ एकादशी से शुरू हुआ उत्सव
दस दिवसीय बैकुंठ उत्सव की शुरुआत बैकुंठ एकादशी से हुई। बैकुंठ एकादशी पर भगवान रंगनाथ विमान में विराजमान होकर निज मंदिर से निकले। भगवान की पालकी को भक्त कंधों पर लेकर निकले थे। बैकुंठ एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में जैसे ही बैकुंठ द्वार खोला पूरा मंदिर परिसर भगवान रंगनाथ के जयकारों से गुंजायमान हो उठा था।
बैकुंठ एकादशी पर भगवान रंगनाथ विमान में विराजमान होकर निज मंदिर से निकले थे
लाखों भक्त निकले थे बैकुंठ द्वार से
बैकुंठ एकादशी पर वर्ष में एक बार ब्रह्म मुहूर्त में खुलने वाले बैकुंठ द्वार से निकलने के लिए भक्त देर रात से ही मंदिर के बाहर जमा होना शुरू हो गए थे। यहां जैसे जैसे बैकुंठ द्वार खुलने का समय नजदीक आता गया वैसे वैसे भक्तों की संख्या में इजाफा होने लगा था। ब्रह्म मुहूर्त में जैसे ही बैकुंठ द्वार खुला वैसे ही लाखों भक्त उस द्वार से निकलने के लिए आतुर नजर आए थे।
बैकुंठ एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में जैसे ही बैकुंठ द्वार खोला पूरा मंदिर परिसर भगवान रंगनाथ के जयकारों से गुंजायमान हो उठा था
कभी बने गोवर्धनधारी तो कभी बने राजा राम
10 जनवरी से शुरू हुए बैकुंठ उत्सव का समापन 19 जनवरी को हुआ। इस दौरान भगवान रंगनाथ ने प्रतिदिन अलग अलग स्वरूप में दर्शन दिए। भगवान रंगनाथ ने कभी दामोदर बनकर,कभी माखन चोर बनकर ,कभी गिर्राज धरण बनकर तो कभी राजा राम बनकर भक्तों को दर्शन दिए। 11 जनवरी को प्रतिदिन शाम को भगवान रंगनाथ माता गोदा (लक्ष्मी) जी के साथ पालकी में विराजमान होकर निज मंदिर से निकले और भक्तों को दर्शन दिए।
बैकुंठ उत्सव के अंतर्गत वट पत्र शायी रूप में दर्शन
शेषशायी रूप में भगवान रंगनाथ ने दर्शन दिए
दूल्हा दुल्हन रूप में विराजमान भगवान रंगनाथ
भगवान रंगनाथ ने कभी दामोदर बनकर,कभी माखन चोर बनकर ,कभी गिर्राज धरण बनकर तो कभी राजा राम बनकर भक्तों को दर्शन दिए
बैकुंठ लोक में लगाई पालकी ने परिक्रमा
निज मंदिर से निकलकर भगवान रंगनाथ की सवारी बैकुंठ द्वार से होते हुए मंदिर परिसर में भ्रमण करने के बाद पौंडनाथ मंदिर पहुंची। जिसे बैकुंठ लोक कहा जाता है। यहां भगवान की सवारी ने प्रतिदिन पांच परिक्रमा लगाई। इस दौरान भक्तों द्वारा भजन कीर्तन किया जाता था। भगवान के भजनों पर देश विदेश से दर्शनों के लिए आने वाले भक्त झूमते हुए नजर आए।
भगवान के भजनों पर देश विदेश से दर्शनों के लिए आने वाले भक्त झूमते हुए नजर आए
दक्षिण भारत के मुख्य आल्वार् संत श्री शठकोप स्वामी भी पालकी पर सुंदर श्वेत वस्त्र और तुलसी मालाओं के शृंगार में पालकी पर आए
अंतिम दिन हुए शरणागत
बैकुंठ उत्सव के दौरान भगवान अल्वार संतों को दर्शन देते हैं और जीवात्मा को बैकुंठ धाम का रास्ता बताते हैं। रंगनाथ भगवान ने षठकोप स्वामी,मधुर कवि स्वामी और नाथ मुनि स्वामी को बैकुंठ उत्सव के दौरान दर्शन दिए। उत्सव के अंतिम दिन अल्वार संत भगवान के शरणागत हुए। रात में आल्वार् को श्री प्रभु की परिक्रमा करवाकर उनके श्री चरणों में अर्पण कर दिया और तुलसी पत्रों से धक दिया, जो उनके मोक्ष पाने का सूचक है। इसके बाद भट्टाचार्य स्वामी के आल्वार् को लौटाने के सविनय निवेदन के बाद श्री प्रभु ने पुनः आल्वार् को वापिस प्रदान किया और दोनों ने शुभ दर्शन दिया। भक्त समाज में गोष्ठी प्रसाद वितरित हुआ। इसके साथ ही बैकुंठ उत्सव का समापन हो गया।