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हाईकोर्ट ने GST अधिकारियों को लगाई फटकार: कोर्ट ने लगाया 20 हजार का जुर्माना, कहा – अधिकारियों को दी जाए उचित ट्रेनिंग। – प्रयागराज (इलाहाबाद) न्यूज़

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 75(4) के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं करने पर एक राज्य जीएसटी अधिकारी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।

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जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) में प्रावधान है कि जहां कर या हर्जाना देय व्यक्ति से लिखित में अनुरोध प्राप्त होता है, या जहां ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कोई प्रतिकूल निर्णय अपेक्षित होता है, वहां सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के जीएसटी अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

याचिका में ज्वाइंट कमिश्नर राज्य जीएसटी कार्पोरेट सर्किल एक गाजियाबाद के 4 फरवरी 2025 के आदेश को चुनौती दी गई थी।

मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने मेरिनो इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के केस में कहा कि, “प्रतिदिन कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जो अधिकारियों द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के घोर उल्लंघन को दर्शाती हैं। जहां पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बावजूद अधिकारी रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर ध्यान दिए बिना पूरी तरह से यांत्रिक तरीके से काम कर रहे हैं।”

पीठ ने आगे कहा कि, “मामलों से निपटने में अधिकारियों के इस तरह के आचरण से राज्य सरकार को समय की भारी हानि होती है, साथ ही इस न्यायालय पर अनावश्यक रूप से बोझ भी बढ़ता है। प्रतिदिन अनेक याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की जा रही हैं, जिनमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया जा रहा है और चूंकि उल्लंघन इतने स्पष्ट हैं, इसलिए इस न्यायालय के पास याचिकाओं को स्वीकार करने और मामलों को अधिकारियों को वापस भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।”

न्यायालय ने आगे निर्देश दिया है कि, “अधिकारियों को मामलों से उचित तरीके से निपटने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त अधिकारियों को जारी परिपत्रों की अनदेखी की गई है और/या उन पर ध्यान नहीं दिया गया है।”

मामले के अनुसार आलू के गुच्छे के एक निर्माता और आपूर्तिकर्ता ने जीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 74 के तहत एसजीएसटी अधिकारी द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसमें 5.82 करोड़ रुपये की मांग की गई है। आलू के गुच्छे को 1105-2000 के बजाय टैरिफ शीर्षक 2005-2000 के तहत वर्गीकृत करने का प्रस्ताव करते हुए एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।

नोटिस में व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख के बारे में कॉलम ‘एन ए’ दर्शाया गया था और व्यक्तिगत सुनवाई के समय के बारे में कॉलम की स्थिति भी यही थी।

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