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हर्षा रिछारिया की दादी का बयान- टिप्पणी करने वाले गलत; झांसी में चाचा बोले- 6 साल की उम्र में शिव चालीसा पढ़ती थी, हर सनातनी को भगवा पहनना चाहिए – Jhansi News

 

प्रयागराज के महाकुंभ में पेशवाई के रथ पर बैठने के बाद चर्चा में आई हर्षा रिछारिया झांसी के मऊरानीपुर तहसील से 6 किलोमीटर दूर धवाकर गांव की रहने वाली हैं। गांव में अभी दादी और चाचा रहते हैं। दादी बिमला देवी ने कहा कि “मेरी पोती हर्षा पर टिप्पणी करने व

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वहीं, चाचा राजेश रिछारिया ने कहा कि “मेरी भतीजी हर्षा जब 5 या 6 साल की थी तो शिव चालीसा करने लगी थी। अब कौन क्या कह रहा है, इस पर कुछ नहीं कह सकता। पर इतना जरूर है कि भगवा कपड़ा हर सनातनी को पहनना चाहिए।”

ये तस्वीर हर्षा रिछारिया की दादी बिमला रिछारिया और चाचा राजेश रिछारिया की है।

25 साल पहले भोपाल चली गई थी हर्षा रिछारिया का जन्म धवाकर गांव में हुआ था। उनका बचपन भी ही गांव में ही बीता। कुछ समय बाद उनके पिता दिनेश रिछारिया और मां किरन झांसी में रहने लगे। करीब 25 साल पहले परिवार भोपाल जाकर बस गया। शुरुआत में पिता प्राइवेट बस पर कंडक्टर थे। उनका जीवन संषर्ष में बीता। अब हर्षा और उनके माता-पिता काफी समय से गांव नहीं आए।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज की शिष्या हैं हर्षा रिछारिया।

उज्जैन कुंभ में भी गई थी हर्षा रिछारिया विमला रिछारिया ने बताया कि “मेरी पोती हर्षा रिछारिया बचपन से ही अध्यात्म से जुड़ी थी। जब वो छोटी थी तो उसे भगवान की आराधना ज्यादा पसंद थी। खेलते वक्त भी वो भगवान के साथ खेला करती थी। थोड़ी बड़ी हुई तो पूजा अर्चना करने लगी। अब महाकुंभ की वजह से वो देशभर में चर्चा में आ गई। अब उस पर टिप्पणी की जा रही हैं, जो गलत हैं। जो लोग टिप्पणी कर रहे हैं, हर्षा उनकी बेटी के समान है।

ऐसा नहीं करना चाहिए। वो अपनी गुरु की आज्ञा मानकर कुंभ में गई थी। गुरु और शिष्या का रिश्ता बाप-बेटी की तरह होता है। बच्चे हैं, ऐसा किसी को नहीं बोलना चाहिए। हर्षा ही नहीं, पूरा परिवार अध्यात्म से जुड़ा हुआ है। हम लोग 1995 से जहां भी कुंभ आयोजित होता है, वहां जाते हैं। साधू-संतों के दर्शन करते हैं। साथ में हर्षा भी जाती थी। प्रयागराज से पहले वो उज्जैन कुंभ में भी गई थी।”

हर्षा रिछारिया की दादी और चाचा इसी मकान में रहते थे।

भगवा कपड़ा हर सनातनी को पहनना चाहिए हर्षा के चाचा राजेश रिछारिया ने कहा कि “हर्षा का जन्म धवाकर गांव में हुआ है। उनका बचपन गांव में ही बीता। जैसे-जैसे बड़ी होती गई तो पढ़ाई के लिए शहर बदलना पड़ा। चूंकि, यहां पढ़ाई के लिए उतनी व्यवस्था नहीं है। यहां से झांसी और फिर करीब 25 साल पहले भोपाल चली गई। भतीजी हर्षा बचपन से ही शंकर भगवान की आराधना में लीन रहती थी।

जब वो 5 या 6 साल की थी तो शिव चालीसा और शिवाचन करने लगी थी। अब कौन क्या कह रहा है, इस पर कुछ नहीं कह सकता। पर इतना जरूर है कि भगवा कपड़ा हर सनातनी को पहनना चाहिए। जितने भी सनातनी है वे अपनी पहचान के लिए भगवा कपड़े जरूर पड़े।”

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