दिल्ली हाईकोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक कांस्टेबल के पक्ष में अहम फैसला सुनाते हुए उसकी सेवा बहाल करने का आदेश दिया है. इस जवान को केवल एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने के आधार पर नौकरी से निकाल दिया गया था. कोर्ट ने साफ कहा है कि सिर्फ बीमारी के आधार पर किसी कर्मचारी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला BSF के एक कांस्टेबल से जुड़ा है, जिसे जुलाई 2017 में एचआईवी पॉजिटिव पाया गया था. इलाज के बाद नवंबर 2018 में उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, लेकिन उसी महीने दोबारा मेडिकल जांच में उसे सेवा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. इसके बाद 9 अप्रैल 2019 को उसे शारीरिक रूप से अयोग्य बताते हुए सेवा से हटा दिया गया. जवान की अपील भी BSF के अपीलीय प्राधिकरण ने अक्टूबर 2020 में खारिज कर दी थी.
इस फैसले को चुनौती देते हुए जवान ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामले की सुनवाई जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने की. दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश हुए BSF के फैसले को रद्द कर दिया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में दिया BSF को दिया अहम आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर जवान अपनी मूल पोस्ट पर काम करने में सक्षम नहीं है तो BSF को उसे उचित सुविधा यानी रीजनेबल एकॉमोडेशन देनी होगी. इसके तहत उसे किसी समकक्ष पद या सुपरन्यूमेरेरी पोस्ट पर नियुक्त किया जा सकता है. सुपरन्यूमेरेरी पोस्ट एक अस्थायी अतिरिक्त पद होता है, जो ऐसे कर्मचारियों के लिए बनाया जाता है जिन्हें नियमित पद पर तैनात नहीं किया जा सकता.
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जवान के खिलाफ न तो कोई शिकायत थी और न ही उसके कामकाज पर कोई सवाल उठाया गया था. केवल एचआईवी पॉजिटिव होना उसे नौकरी से निकालने का आधार नहीं बन सकता.
दिल्ली हाई कोर्ट ने राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज एक्ट, 2016 और एचआईवी एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी संस्थान किसी भी कर्मचारी के साथ बीमारी के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते.
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